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भारत की नई राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू देश के सर्वोच्च संवैधानिक पद पर आज विराजमान हैं। लेकिन यहां तक पहुंचने का सफर बिलकुल भी आसान नहीं था।  आदिवासी परिवार में जन्मीं द्रौपदी मुर्मू के जीवन की कहानी बेहद संघर्षभरी है। उनकी कहानी लोगों को प्रेरणा दे सकती है। गरीबी और पिछड़े क्षेत्र से ताल्लुक रखने वाली द्रौपदी मुर्मू ने अपने अधिकारों के लिए एक लम्बा संघर्ष किया। उनकी शादी 1980 में श्याम चरन मुर्मू से हुई। दोनों की पहली मुलाकात भुवनेश्वर में पढ़ाई के दौरान हुई थी। धीरे-धीरे यह मुलाकात प्यार में बदल गई। शादी के कुछ समय बाद द्रौपदी मुर्मू के ऊपर एक के बाद एक दुखों के पहाड़ टुट पड़े। पहले पति का साथ छूटा फिर बेटे भी नहीं रहे। उस समय वो पूरी तरह से टुट गई थी। द्रौपदी मुर्मू की महज तीन साल की पहली संतान की 1984 में मौत हो गई थी। उसके बाद 2010 में उन्होंने अपने 25 वर्षीय बड़े बेटे लक्ष्मण को खो दिया, छोटा बेटा शिपुन साल 2013 में जब 28 साल का हुआ, वह भी दुनिया से चल बसा। और अक्टूबर 2014 में पति श्याम चरण द्रौपदी मुर्मू और दुनिया का साथ हमेशा के लिए छोड़ गए। वो समय उनके लिए बहुत कठिन था इस समय वो पूरी तरह से टुट गई थी। चार साल में दो बेटों और पति की मौत का सदमा उन्हें झेलना पड़ा। बड़े बेटे के निधन के बाद राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू छह महीने के लिए डिप्रेशन में चली गई थीं। बड़ी हिम्मत कर के वो अपने बल पर इस अवसाद से बाहर आई। इसके लिए उन्होंने आध्यात्म का सहारा लिया। द्रौपदी मुर्मू एक आध्यात्मिक संस्था ब्रह्मकुमारी से जुड़ गई और लगातार मेहनत और अपने कौशल के बलबूते पर आगे बढ़ती गईं। द्रौपदी मुर्मू ने पति स्व. श्याम चरन मुर्मु के निधन के बाद बेटी इतिश्री मुर्मु की परवरिश की और राजनीतिक कॅरियर भी संभाला। अपने तंगहाली भरे जीवन से द्रौपदी मुर्मू ने सीख ली और तय किया कि ज्यादा से ज्यादा लोगों को शिक्षित किया जाए।  इसलिए उन्होंने रायरंगपुर के श्री अरबिंदो इंटीग्रल एजुकेशन सेंटर में पढ़ाना शुरू किया वो भी बिना वेतन के। इतना ही नहीं उन्होंने पहाड़पुर वाले घरों को स्कूल के रूप में परिवर्तित कर दिया। अब बच्चे इस स्कूल में शिक्षा प्राप्त करते हैं मुर्मू बच्चों और पति पुण्यतिथि पर यहां आती हैं। मुर्मू ने हमेशा से ही बच्चों को शिक्षित करने के प्रयास किए हैं, इसलिए घर को स्कूल में तब्दील करने का फैसला लिया।

द्रौपदी मुर्मू की बेटी इतिश्री ने एक बार अपनी मां द्रौपदी मुर्मू के लिए कहा। कि वह एक खुली किताब की तरह हैं और बहुत जल्द सबके साथ घुलमिल जाती हैं. उन्होंने कहा था कि मां को आज तक जितने भी पद और जिम्मेदारियां मिली, उन्होंने पूरी ईमानदारी और मेहनत के साथ काम किया. जब NDA ने माँ को राष्ट्रपति के लिए अपना उम्मीदवार चुना तो उस समय माँ बेहद शांत हो गईं थी और उनकी आंखों में आंसू थे। 

द्रौपदी मुर्मू ने अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत 2000 में की। ओडिशा के मयूरभंज जिले की रायरंगपुर सीट से 2000 से 2009 के बीच बीजेपी के टिकट से दो बार विधायक चुनी गई। इतना ही नहीं उन्होंने कई मंत्री पदों पर कार्यभार भी संभाला है। इसके साथ ही उन्होंने भारत के राज्य में पहला आदिवासी राज्यपाल के तौर पर भी अपना नाम दर्ज कराया है । इतनी कठनाईयों और संघर्ष के बीच आज वो राष्ट्रपति बनी हैं। और महिलाओँ के लिए मिसाल बन कर सामने आई हैं।

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