गलुरु जा रही एक ट्रेन में टिकट चेकर की नजर एक सीट के नीचे दुबकी हुई ग्यारह-बारह साल की एक लड़की पर पड़ी और उसने उसे टिकट दिखाने के लिए कहा। लड़की रोते हुए बाहर निकली और कहा कि उसके पास टिकट नहीं है। टिकट चेकर ने उसे डांटते हुए गाड़ी से नीचे उतरने को कहा। तभी वहीं मौजूद एक महिला ने दखल दिया, ‘इस लड़की का बेंगलुरु तक का टिकट बना दो इसके पैसे मैं दे देती हूं।’
बेंगलुरु ले गई और जान-पहचान की एक स्वयंसेवी संस्था को सौंप दिया। चित्रा वहां रहकर पढ़ाई करने लगी। महिला उसका हालचाल पता करती और उसकी मदद भी करती रहती।
करीब बीस साल बाद महिला को अमेरिका के सेन फ्रांसिस्को में एक कार्यक्रम में बुलाया गया। कार्यक्रम के बाद वह जब अपना बिल देने के लिए रिसेप्शन पर आई तो पता चला कि उनके बिल का भुगतान सामने बैठे एक दंपती ने कर दिया है। महिला ने जब उस दंपती से पूछा, ‘आप लोगों ने मेरा बिल क्यों भर दिया?’ युवती ने कहा, ‘मैम, गुलबर्गा से बैंगलुरु तक के टिकट के सामने यह कुछ भी नहीं है।’
महिला ने ध्यानपूर्वक देखा और कहा, ‘अरे चित्रा, तुम’। यह महिला कोई और नहीं, इन्फोसिस फाउंडेशन की चेयरपर्सन सुधा मूर्ति थीं। आज ‘सादा जीवन उच्च विचार’ वाले सिद्धांत को अपनी रियल लाइफ में अपनाने वाली सुधा मूर्ति आईटी इंडस्ट्रियलिस्ट और इंफोसिस के फाउंडर एन आर नारायणमूर्ति की पत्नी होने के साथ -साथ एक इंस्पायरिंग वुमन भी हैं। सुधा मूर्ति को अपनी लाइफ में कई तरह के संघर्षों का सामना करना पड़ा, लेकिन अपनी पॉजिटिविटी, लगन और जी-तोड़ मेहनत से वह अपने लिए रास्ते बनाती गईं और आज महिलाओं के लिए एक बड़ी इंस्पिरेशन बन गईं।
1960 के दशक में इंजीनियरिंग में पूरी तरह से पुरुषों का वर्चस्व था। उस समय सुधा इंजीनियरिंग कॉलेज में 150 स्टूडेंट्स के बीच दाखिला पाने वाली पहली महिला थीं। सुधा मूर्ति को उस समय कक्षा में काफी परेशान किया जाता था। कभी उनकी सीट पर इंक गिरा दी जाती थी तो कभी कागज के हवाई जहाजों से क्लास में उनका स्वागत किया जाता था। इंजीनियरिंग कॉलेज के प्रिंसिपल ने एडमिशन के वक्त उनके सामने शर्त रखी थी कि कॉलेज में साड़ी पहननी पड़ेगी, कॉलेज की कैंटीन से दूर रहना होगा और लड़कों से बात नहीं करनी होगी। सुधा ने सारी बातें मंजूर कर लीं थीं। इस सब चीजों के बीच सुधा ने अपनी मेहनत से क्लास में पहला स्थान हासिल किया। उस समय सुधा के लिए यह कामयाबी बहुत ज्यादा मायने नहीं रखती थी क्योंकि उनके लक्ष्य बहुत बड़े थे। सुधा मूर्ति के लिए इंजीनियर बनना आसान नहीं था क्योंकि उनके समय का समाज आज से बहुत अलग था। तब महिलाएं कॉलेज नहीं जाती थीं और ना ही उनसे उम्मीद की जाती थी कि वे पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम करें। सुधा मूर्ति पढ़ने में तो अच्छी थीं ही साथ ही उनको लिखने का भी शौक है। सुधा मूर्ति बेस्ट सेलिंग राइटर्स में शुमार की जाती हैं। उनकी अब तक 1.5 मिलियन से भी ज्यादा किताबें बिक चुकी हैं, जिनमें बच्चों की किताबों से लेकर शॉर्ट स्टोरीज, टेक्निकल बुक्स, 24 उपन्यास और कई नॉन फिक्शन बुक्स शामिल हैं।
सुधा मूर्ती ने नारायण मूर्ति को इन्फ़ोसिस शुरू करने के लिए अपनी पर्सनल सेविंग्स से 10,000 रुपये भी दिए थे। और इतना ही नहीं सुधा ने Walchand group of Industries में सीनियर सिस्टम एनालिस्ट के तौर पर कंपनी में काम शुरू किया, ताकि वह फाइनेंशियली मजबूत रह सकें। सुधा मूर्ति एक Interview में बताती हैं कि उन्होंने ज्वैलरी बेचकर एक छोटा सा घर बनाया था। क्योंकि तब कंपनी से कमाई नहीं होती थी। घर के नीचे ही नारायण मूर्ति अपना ऑफिस चलाते थे। अपनी नौकरी के साथ साथ सुधा मूर्ति इंफोसिस में एक कुक, क्लर्क और प्रोग्रामर की भी भूमिकाएं निभाती थीं।.आज के समय में पति-पत्नी में घर-ऑफिस की दोहरी जिम्मेदारी होने पर अक्सर झगड़े हो जाते हैं। लेकिन सुधा मूर्ति ने अपने पति से ऐसी कोई शिकायत नहीं की। सुधा मूर्ति ने एक बेहतरीन इंजीनियर, टीचर, सोशल वर्कर, बेस्ट सेलिंग राइटर और मां की भूमिका निभाई है। कभी सुधा के पास ट्रेन की टिकट लेने के पैसे भी नहीं थे लेकिन आज वो Infosys का Chairperson हैं।
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