वैसे तो बुंदेलखंड उबड़-खाबड़ टीलों और बीहड़ों का इलाक़ा है और यहां के लोगों को तमाम तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है लेकिन फिर भी यहां की महिलाओं की वीरता की कहानियां इतिहास के पन्नों में दर्ज है। और अगर किसी ने बुंदेलखंड के इसी इतिहास को बरकरार रखा है तो वो हैं बुंदेलखंड की महिलाएं। बुंदेलखंड के इतिहास को बरकरार रखने वाली महिलाओं में से एक महिला हैं ‘गुलाबी गैंग’ की मुखिया संपत पाल। संपत पाल की कहानी किसी फिल्म की पटकथा जैसी है, साल 1960 में संपत पाल का जन्म बांदा के बैसकी गांव के एक ग़रीब परिवार में हुआ था। जब संपत 12 साल की हुई तो उनकी शादी एक सब्ज़ी बेचनेवाले से करा दी गई। शादी के चार साल बाद उनका गौना हुआ और वो अपने ससुराल चित्रकूट ज़िले के रौलीपुर-कल्याणपुर आ गई। जैसे ही संपत ससुराल गई तो वहां पर उनके शुरू के दिन बहुत ही संघर्ष भरे रहे। एक दिन संपत ने अपने घर से गांव के एक हरिजन परिवार को पीने के लिए पानी दे दिया जिस दिन के बात से संपत का पूरा जीवन बदल गया। संपत को इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ी। संपत को गाँव से निकाल दिया गया। लेकिन उस समय संपत कमज़ोर नहीं पड़ी और गाँव छोड़ कर अपने परिवार के साथ बांदा के कैरी गाँव में बस गई। यहीं से ही संपत का सामाजिक सफ़र शुरु हुआ। संपत ने उस दिन गाँव तो छोड़ दिया था लेकिन मजबूर और कमजोर लोगों के खिलाफ आवाज उठाने का इरादा नहीं छोड़ा था। एक दिन अपने पड़ोस की एक महिला के साथ उसके पति को मार-पीट करते हुए संपत ने देखा। संपत ने उसे रोका, लेकिन तब उस व्यक्ति ने इसे अपना पारिवारिक मामला बता कर उन्हें बीच-बचाव करने से रोक दिया। इस घटना के बाद उस शख्स को सबक सीखाने के लिए संपत ने पांच महिलाओं को एकजुट कर उस व्यक्ति को खेतों में पीट डाला और यहीं से संपत के ‘गुलाबी गैंग’ की नींव रखी गई। उस दिन के बाद से संपत ने फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा, जहां कहीं भी उन्होंने किसी तरह की ज़्यादती होते देखी तो वहां दल-बल के साथ पहुंच गईं और ग़रीबों, औरतों, पिछड़ों, पीड़ितों, बेरोज़गारों के लिए लड़ाई लड़नी शुरु कर दी। संपत ना तो कभी पुलिस-प्रशासन के सामने झुकीं और ना ही उन्होंने कभी इलाक़े के दस्यु सरगनाओं के आगे हथियार डाले।
साल 2011 में अंतरराष्ट्रीय अखबार द गार्जियन ने संपत पाल को दुनिया की सौ प्रभावशाली प्रेरक महिलाओं की सूची में शामिल किया, जिसके बाद कई देसी-विदेशी संस्थाओं ने उनपर डॉक्यूमेंट्री फिल्में तक बना डाली। फ्रांस की एक मैग्जीन ओह ने साल 2008 में संपत पाल के जीवन पर आधारित एक पुस्तक भी प्रकाशित की जिसका नाम था मॉय संपत पाल, चेफ द गैंग इन सारी रोज जिसका मतलब है मैं संपत पाल- गुलाबी साड़ी में गैंग की मुखिया।
इतना ही नहीं, संपतपाल अंतरराष्ट्रीय महिला संगठनों द्वारा आयोजित महिला सशक्तिकरण कार्यक्रम में भाग लेने पेरिस और इटली भी जा चुकी है। गुलाबी गैंग पर एक फिल्म भी बन चुकी है।
संपत एक सत्यनिष्ठ, कर्तव्यनिष्ट और ईमानदार महिला हैं। उन्होंने शुरू से ही लोगों के लिए काम किया है। खास कर उन्होंने महिलाओं की समस्याओं को बेहतर ढंग से समझा है और साथ ही महिलाओँ को उन समस्याओं से निजात भी दिलाया है।
बुंदेलखंड के बांदा और आसपास के इलाके में गुलाबी गैंग का अपना अलग ही रुतबा हैं। पीडि़तों की मदद में अफसरों की पिटाई से लेकर उनका जुलूस तक निकाल देना इस गैंग के लिए आम बात है। इस गैंग की मुखिया संपत पाल की पहचान हाथ में लाठी और गुलाबी साड़ी है। बुंदेलखंड में ददुआ से लेकर ठोकिया ने आम आदमी को अपनी छाया में जीने को मजबूर किया है, मगर गुलाबी गैंग इनके ठीक उलट है। यह गैंग लोगों की हमदर्द के तौर पर अपनी पहचान बना चुकी है।
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