गुजरात की रहने वाली एक 17 साल की लड़की ने जो बदलाव लाने का सपना देखा था। आज उसे उसने सच किया है। वो लड़की आज गौरीबेन नाम से जानी जाती है। गौरीबेन एक ऐसी महिला जिसे पढ़ना-लिखना नहीं आता है। जब वो 17 साल की थीं तब उनकी शादी करा दी गई। उनकी शादी एक ऐसे परिवार में करा दी गई जहां महिलाओं का घर से बाहर निकलना या दहलीज को पार करना अच्छा नहीं माना जाता है. वहां महिलाओं को घुंघट में रहने की हिदायत देने के साथ ही उन्हें ये भी सिखाया जाता है कि घूंघट के बाहर उनका कोई संसार नहीं है। एक ऐसे समाज के बीच और ऐसी स्थितियों में खुद के पैरों पर खड़ा होना साथ ही हजारों महिलाओं को रोजगारर देना काबिले तारीफ है।
गौरीबेन ने तमाम चुनौतियों के बाद अपना सपना पूरा किया और हस्तकला के क्षेत्र में योगदान के लिए 2012 में उन्हें राष्ट्रपति से पुरस्कार भी मिला।
गौरीबेन की शादी जिस गांव में हुई थी वहां पर पीने के पानी की समस्या थी। और इसकी वजह से कई परिवार गांव को छोड़कर शहरों की ओर पलायन करने लगे थे। गांवों में पानी की कमी के कारण खेती की बड़ी समस्याएं होती थी। गांव में लोगों के पास कमाई का कोई जरिया नहीं था। गौरीबेन का भी परिवार इसी समस्या से जूझ रहा था। इस सब स्थिति को देख कर गौरीबेने ने तय किया कि वे इस गांव की तस्वीर को बदलेगी और इसकी शुरुआत वो खुद करेंगी। गौरीबेन ने हस्तकला को अपना रोजगार बनाया और धीरे धीरे उन्होंने अपने साथ महिलाओं को जोड़ना शुरू कर दिया।
कुछ समय बाद वो अहमदाबाद की एक सेवा संस्थान से जुड़ गईं। जिसके माध्यम से महिलाओं को कुछ आमदनी भी हासिल होने लगी। गौरीबेन ने राज्य के अलग-अलग जगहों पर हस्तकला से बनाई गई चीजों का एक्जिबिशन में स्टॉल लगाना शुरू किया, और अपनी कला को प्रदर्शित किया। ये सफर उनके लिए ज़रा भी आसान नहीं था। जब उन्होंने गांव से बाहर शहर की ओर रुख किया तो उनका पूरा परिवार उनके खिलाफ हो गया था। उनके पति ने उन्हें शहर जाने से मना कर दिया। इतना ही नहीं उनकी मां ने तो उन्हें यह तक कह दिया कि यदि वो गांव से बाहर दिल्ली गईं तो उनके लिए घर के दरवाजे हमेशा-हमेशा के लिए बंद हो जाएंगे। वो समय गौरीबेन के लिए बहुत मुश्किल भरा था। उस समय परिवार ही नहीं बल्कि पूरा गांव उनके खिलाफ खड़ा हो चुका था।
इन सब के बावजूद गौरीबेन रुकी नहीं, उन्होंने अपना सफर जारी रखा। क्योंकि उन्होंने जो सपने देखे थे वो उनको इस तहर नहीं छोड़ सकती थीं। उन्हें रोकने के लिए लोगों ने उन्हें डराने और धमकाने की कोशिश की लेकिन गौरीबेन की ज़िद इतनी हल्की नहीं थी को वो टुट जाए। उन्होंने अपने काम पर भरोसा किया और लगातार मेहनत कि. और उसी कड़ी मेहनत के नतिजन वो आज इस मुकाम तक पहुंच पाई हैं। गौरीबेन ने सिर्फ 10 महिलाओं के साथ अपने काम की शुरुआत की थी लेकिन आज उनके साथ लगभग 17000 से भी ज्यादा महिलाएं जुड़ चुकी हैं।
साल 2012 में गौरीबेन को राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने बेस्ट हस्तकला के अवॉर्ड से सम्मानित किया। धीरे-धीरे गौरीबेन के प्रॉडक्ट्स ने विदेशों में भी अपनी जगह बना ली। उन्हें अलग-अलग जगह बुलाया जाने लगा। गौरीबेन ने अमेरिका, सिडनी , साऊथ अफ्रीका और इटली जैसे देशो में भी अपनी हस्तकला को प्रचलित किया है।
पाटन की हस्तकला की डिमांड बॉलीवुड में भी है। यही नहीं इनकी बनाई गई चीजें ऑनलाइन भी बिकती हैं।
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